भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"म्हनैं ठाह है : तीन / रमेश भोजक ‘समीर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('<poem>म्हनैं ठाह है नाप जोख’र हैसियत मुजब बणाया जावै अ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem>म्हनैं ठाह है | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=रमेश भोजक ‘समीर’ | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatMoolRajasthani}} | ||
+ | {{KKCatKavita}}<poem>म्हनैं ठाह है | ||
नाप जोख’र | नाप जोख’र | ||
हैसियत मुजब | हैसियत मुजब |
05:28, 19 जुलाई 2013 का अवतरण
म्हनैं ठाह है
नाप जोख’र
हैसियत मुजब
बणाया जावै
अजकाळै भायला!
एक-दूजै री कमर में
खाज करणै रै राजीपै सागै
गूंथीजै रिस्ता।
इणी’ज खातर तो
आजकाळै टाळ दिया जावै
जरूरत ई कोनी रैयी अबै
बिना नखवाळां री।