भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद नदीम काज़मी }} जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर ...)
(कोई अंतर नहीं)

01:53, 25 अक्टूबर 2007 का अवतरण

जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी दिल मगर स पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|

तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी|

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले तूने जाकर तो जुदाइ मेरी कि़स्मत कर दी|

मुझको दुश्मन के रादों पे भी प्यार आता है तेरी ल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|

पूछ बैठा हूं, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|