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"जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी | + | जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी,<br> |
− | दिल मगर स पे वो धडका, कि क़यामत कर दी| | + | दिल मगर स पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|<br><br> |
− | तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता | + | तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,<br> |
− | लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी| | + | लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी|<br><br> |
− | मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले | + | मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,<br> |
− | तूने जाकर तो जुदाइ मेरी कि़स्मत कर दी| | + | तूने जाकर तो जुदाइ मेरी कि़स्मत कर दी|<br><br> |
− | मुझको दुश्मन के रादों पे भी प्यार आता है | + | मुझको दुश्मन के रादों पे भी प्यार आता है,<br> |
− | तेरी ल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी| | + | तेरी ल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|<br><br> |
− | पूछ बैठा हूं, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता | + | पूछ बैठा हूं, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,<br> |
− | तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी| | + | तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|<br><br> |
02:07, 25 अक्टूबर 2007 का अवतरण
जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी,
दिल मगर स पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|
तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,
लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी|
मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,
तूने जाकर तो जुदाइ मेरी कि़स्मत कर दी|
मुझको दुश्मन के रादों पे भी प्यार आता है,
तेरी ल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|
पूछ बैठा हूं, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,
तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|