भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद नदीम काज़मी }}) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अहमद नदीम काज़मी | |रचनाकार=अहमद नदीम काज़मी | ||
}} | }} | ||
+ | |||
+ | मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं| | ||
+ | नदीम! काश यही एक काम कर जाऊं| | ||
+ | |||
+ | ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास, | ||
+ | जो इज़ां हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊं| | ||
+ | |||
+ | मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है, | ||
+ | तेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊं| | ||
+ | |||
+ | तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर | ||
+ | कहां कहां तुझे ढूंढूं किधर किधर जाऊं| | ||
+ | |||
+ | मैं जि़न्दा था कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म न हो, | ||
+ | जो तू मिला है तो अब सोचता हूं मर जाऊं| | ||
+ | |||
+ | ये सोचता हूं कि मैं बुत-परस्त क्यूं न हुआ, | ||
+ | तुझे क़रीब जो पाऊं तो ख़ुद से डर जाऊं| | ||
+ | |||
+ | किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ, | ||
+ | किसी कली पे न भूले से पांव धर जाऊं| | ||
+ | |||
+ | ये जी में आती है, तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में, | ||
+ | कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊं| | ||
+ | |||
+ | तख़्लीक़-ए-फ़न |
02:05, 25 अक्टूबर 2007 का अवतरण
मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं| नदीम! काश यही एक काम कर जाऊं|
ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास, जो इज़ां हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊं|
मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है, तेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊं|
तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर कहां कहां तुझे ढूंढूं किधर किधर जाऊं|
मैं जि़न्दा था कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म न हो, जो तू मिला है तो अब सोचता हूं मर जाऊं|
ये सोचता हूं कि मैं बुत-परस्त क्यूं न हुआ, तुझे क़रीब जो पाऊं तो ख़ुद से डर जाऊं|
किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ, किसी कली पे न भूले से पांव धर जाऊं|
ये जी में आती है, तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में, कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊं|
तख़्लीक़-ए-फ़न