भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चीख़ रहे हैं सन्नाटे / इरशाद खान सिकंदर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर }} {{KKCatGhazal}} <poem> चीख़...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:41, 15 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

चीख़ रहे हैं सन्नाटे
कोई कैसे शब काटे

नफ़रत ऐसा पेशा है
जिसमें घाटे ही घाटे

खुश होंगे वो उससे ही
जो उनके तलवे चाटे

ऐसी मिट्टी दे मौला
जो दिल की खाई पाटे

अपना घर है तो फिर क्यों
रात कोई बाहर काटे