भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ये कैसी आज़ादी है / इरशाद खान सिकंदर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर }} {{KKCatGhazal}} <poem> ये क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:03, 15 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

ये कैसी आज़ादी है
सांस गले में अटकी है

पत्ते जलकर राख हुए
सहमी-सहमी आँधी है

ये कैसा सूरज निकला
जिसने आग लगा दी है

चूहों ने ये सोचा था
दुनिया भीगी बिल्ली है

उसके घर के रस्ते में
हमसे दुनिया छूटी है

अपनी करके मानेगी
चाहत ज़िद्दी लड़की है

मिन्नत छोड़ो चीख़ पड़ो
दिल्ली ऊँचा सुनती है

मिट्टी में मिल जायेगी
मिट्टी आख़िर मिट्टी है