भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जिस्म दरिया का थरथराया है / इरशाद खान सिकंदर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर }} {{KKCatGhazal}} <poem> जिस्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:03, 15 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
जिस्म दरिया का थरथराया है
हमने पानी से सर उठाया है
शाम की सांवली हथेली पर
इक दिया भी तो मुस्कुराया है
अब मैं ज़ख़्मों को फूल कहता हूँ
फ़न ये मुश्किल से हाथ आया है
जिन दिनों आपसे तवक़्को थी
आपने भी मज़ाक़ उड़ाया है
हाले दिल उसको क्या सुनाएँ हम
सब उसी का किया-कराया है