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"घर की दहलीज़ अंधेरों से सजा देती है / इरशाद खान सिकंदर" के अवतरणों में अंतर
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15:07, 15 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
घर की दहलीज़ अंधेरों से सजा देती है
शाम जलते हुए सूरज को बुझा देती है
मैं भी कुछ दूर तलक जाके ठहर जाता हूँ
तू भी हँसते हुए बच्चे को रुला देती है
ज़ख़्म जब तुमने दिये हों तो भले लगते हैं
चोट जब दिल पे लगी हो तो मज़ा देती है
दिन तो पलकों पे कई ख़्वाब सजा देता है
रात आँखों को समंदर का पता देती है
कहीं मिल जाय ‘सिकंदर’ तो ये कहना उससे
घर की चौखट तुझे दिन रात सदा देती है