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"फ़क़ीह-ए-शहर से रिश्ता बनाए रहता हूँ / 'सुहैल' अहमद ज़ैदी" के अवतरणों में अंतर

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16:15, 18 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

फ़क़ीह-ए-शहर से रिश्ता बनाए रहता हूँ
शरीफ़ घर का हूँ इज़्ज़त बचाए रहता हूँ

मगर ये राह तो इस तरह तय नहीं होगी
मैं दोनों पाँव ज़मीं पर जमाए रहता हूँ

अकेले शख़्स पे दुश्मन दिलेर होते हैं
तो साथ में कोई क़िस्सा लगाए रहता हूँ

बनाए कुछ नहीं बनती ज़मीं पे जब मुझ से
तो आसमान को सर पर उठाए रहता हूँ

अभी कहाँ कोई नौबत है मरने जीने की
ज़रा अज़ीज़ों को यूँ ही डराए रहता हूँ

किसी फ़कीर के तावीज़ की तरह ‘ज़ैदी’
मैं ज़ेर-ए-संग तमन्ना दबाए रहता हूँ