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"शोर थमने के बाद / शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी" के अवतरणों में अंतर

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16:02, 21 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

अब शोर थमा तो मैं ने जाना
आधी के क़रीब रो चुकी है

शब गर्द को अश्क धो चुकी है
चादर काली ख़ला की मुझ पर

भारी है मिस्ल-ए-मौत शहपर
है साँस को रूकने का बहाना

तस्बीह से टूटता है दाना
मैं नुक़्ता-ए-हक़ीर आसमानी

बे-फ़स्ल है बे-ज़माँ है तू भी
कहती है ये फ़लसफ़ा-तराज़ी

लेकिन से सनसनाती वुसअत
इतनी बे-हर्फ़ ओ बे-मुरव्वत

आमादा-ए-हर्ब-ए-ला-ज़मानी
दुश्मन की अजनबी निशानी