भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शोर थमने के बाद / शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:02, 21 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
अब शोर थमा तो मैं ने जाना
आधी के क़रीब रो चुकी है
शब गर्द को अश्क धो चुकी है
चादर काली ख़ला की मुझ पर
भारी है मिस्ल-ए-मौत शहपर
है साँस को रूकने का बहाना
तस्बीह से टूटता है दाना
मैं नुक़्ता-ए-हक़ीर आसमानी
बे-फ़स्ल है बे-ज़माँ है तू भी
कहती है ये फ़लसफ़ा-तराज़ी
लेकिन से सनसनाती वुसअत
इतनी बे-हर्फ़ ओ बे-मुरव्वत
आमादा-ए-हर्ब-ए-ला-ज़मानी
दुश्मन की अजनबी निशानी