भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सब्ज़ सुरज की किरन / शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:03, 21 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
सब्ज़ बिल्ली सब्ज़
आँखें सब्ज़
सूरज की किरन
जब नीम ख़्वाबी की तरह उस आँख ऊपर
झूलती है झूमती है सब्ज़
आँखें सब्ज़-रौशन
रंग की बारीक लहरें
अर्ग़वानी क़ुर्मुज़ी थोड़ा बहुत सोने का झिलमिल रंग
आँखें ज़िंदगी बनती हैं धुंदली रौशनी में
सब्ज़ भूरी आँखें खुलती हैं तो फ़ौरन
क़ुमक़ुमे सी खिलखिलाती
बे-महाबा रौशनी हर गोशे से खिंच कर सिमट आती है भूरी सब्ज़
चश्म बे-हिजाबी कौंदती है
धूप की गर्मी नज़र
बेबाक उरियाँ
फैलते पारे की सूरत शाह-पारों और घरों में
मौजज़न है सब्ज़ आँखें सब्ज़
शफ़्फ़ाफ़ आबगीना बन गई हैं