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"कौ ठगवा नगरिया लूटल हो / कबीरदास" के अवतरणों में अंतर
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चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।। | चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।। |
17:10, 24 अगस्त 2013 का अवतरण
कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।। टेक।।
चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।।
उठो री सखी मोरी माँग सँवारो, दुलहा मोसे रूसल हो।। 2।।
आये जमराज पलंग चढ़ि बैठे, नैनन आँसू टूटल हो।। 3।।
चारि जने मिलि खाट उठाइन, चहुँ दिसि धू-धू उठल हो।। 4।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, जग से नाता टूटल हो।। 5।।