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गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
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ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलें
 
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रचनाकार: [[खातिर ग़ज़नवी]]
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रचनाकार: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]
 
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गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
+
ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलें
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए
+
तेरा चौड़ा छाता
 
+
रे जन-गण के भ्राता
गर्मी-ए-महफ़िल फ़क़त इक नारा-ए-मस्ताना है
+
शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते
और वो ख़ुश हैं कि इस महफ़िल से दीवाने गए
+
भू-स्वामी, निर्माता !
 
+
कीच, धूल, गन्दगी बदन पर
मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रूसवाई कहूँ
+
लेकर ओ मेहनतकश!
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़साने गए
+
गाता फिरे विश्व में भारत
 
+
तेरा ही नव-श्रम-यश !
वहशतें कफछ इस तरह अपना मुक़द्र बन गईं
+
तेरी एक मुस्कराहट पर
हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
+
वीर पीढ़ियाँ फूलें ।
 
+
ये अनाज की पूलें
यूँ तो मेरी रग--जाँ से भी थे नज़दीक-तर
+
तेरे काँधें झूलें !
आँसुओं की धुँद में लेकिन न पहचाने गए
+
इन भुजदंडों पर अर्पित
 
+
सौ-सौ युग, सौ-सौ हिमगिरी
अब भी उन यादों की ख़ुश-बू जे़हन में महफ़ूज है
+
सौ-सौ भागीरथी निछावर
बारहा हम जिन से गुलज़ारों को महकाने गए
+
तेरे कोटि-कोटि शिर !
 
+
ये उगी बिन उगी फ़सलें
क्या क़यामत है के ‘ख़ातिर’ कुश्ता-ए-शब थे भी हम
+
तेरी प्राण कहानी
सुब्ह भी आई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
+
हर रोटी ने, रक्त बूँद ने
 +
तेरी छवि पहचानी !
 +
वायु तुम्हारी उज्ज्वल गाथा
 +
सूर्य तुम्हारा रथ है,
 +
बीहड़ काँटों भरा कीचमय
 +
एक तुम्हारा पथ है ।
 +
यह शासन, यह कला, तपस्या
 +
तुझे कभी मत भूलें ।
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ये अनाज की पूलें
 +
तेरे काँधे झूलें !
 
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14:15, 26 अगस्त 2013 का अवतरण

ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलें

ये अनाज की पूलें तेरे काँधे झूलें
तेरा चौड़ा छाता
रे जन-गण के भ्राता
शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते
भू-स्वामी, निर्माता !
कीच, धूल, गन्दगी बदन पर
लेकर ओ मेहनतकश!
गाता फिरे विश्व में भारत
तेरा ही नव-श्रम-यश !
तेरी एक मुस्कराहट पर
वीर पीढ़ियाँ फूलें ।
ये अनाज की पूलें
तेरे काँधें झूलें !
इन भुजदंडों पर अर्पित
सौ-सौ युग, सौ-सौ हिमगिरी
सौ-सौ भागीरथी निछावर
तेरे कोटि-कोटि शिर !
ये उगी बिन उगी फ़सलें
तेरी प्राण कहानी
हर रोटी ने, रक्त बूँद ने
तेरी छवि पहचानी !
वायु तुम्हारी उज्ज्वल गाथा
सूर्य तुम्हारा रथ है,
बीहड़ काँटों भरा कीचमय
एक तुम्हारा पथ है ।
यह शासन, यह कला, तपस्या
तुझे कभी मत भूलें ।
ये अनाज की पूलें
तेरे काँधे झूलें !