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"मैं अपनी आँख भी ख़्वाबों से धो नहीं पाया / ख़ालिद मलिक ‘साहिल’" के अवतरणों में अंतर
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21:37, 27 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
मैं अपनी आँख भी ख़्वाबों से धो नहीं पाया
मैं कैसे दूँगा ज़माने को जो नहीं पाया
शब-ए-फ़िराक़ थे मौसम अजीब था दिल का
मैं अपने सामने बैठा था रो नहीं पाया
मिरी ख़ता है कि मैं ख़्वाहिशों के जंगल में
कोई सितारा कोई चाँद बो नहीं पाया
हसीन फूलों से दीवार-ओ-दर सजाए थे
बस एक बर्ग-ए-दिल आसा पिरो नहीं पाया
चमक रहे थे अंधेरे में सोच के जुगनू
मैं अपने याद के ख़ेमे में सो नहीं पाया
नहीं है हर्फ़-ए-तसल्ली मगर कहूँ ‘साहिल’
नहीं जो पाया कहीं यार तो नहीं पाया