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{{KKRachna
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
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<poem>
ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है?
धाज्जियाँ तूने नकाबों की गिनी तो होंगी
यूँ ही लौट आती है या कर के वजू रफ़ू आती है?
अपने सीने में चुरा लाई है किसे की आहें
मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है!
</poem>
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