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"ऐ लड़की-3 / देवेन्द्र कुमार देवेश" के अवतरणों में अंतर

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ऐ लड़की,
+
ऐ लड़की !
क्यों किया फ़ैसला तुमने
+
तुझे अब लड़की कहूँ भी तो कैसे ?
मेरे साथ अपने गठबंधन का
+
अब तो बसा लिया है तुमने
जानकर मेरे बारे में
+
अपना एक नया संसार
मुझसे मिलकर और बातें कर थोड़ी-सी
+
समर्पित कर दिया है तुमने अपना वजूद
क्या सचमुच परख लिया था तुमने मुझे / पूरा का पूरा
+
और समाहित कर लिया है
क्या सोचकर / रचाई थी तुमने अपने हाथों में मेंहदी
+
किसी को अपनी दुनिया में ।
लगवाया था अपने बदन पर हल्दी का उबटन
+
मैं जानता हूँ
डाली थी गले में वरमाला
+
हँसी–ख़ुशी स्वीकार किया है तुमने यह सब
सात फेरों के साथ लिया था मुझसे वादा
+
पर नहीं जानता
सात वचनों का
+
उस मानसिक तनाव,
चौक-चौबारे और पूजकर कुलदेव-देवियाँ
+
पारिवारिक ख़ुशियों के दबाव
रखकर व्रत-उपवास और  
+
या सामाजिक स्थितियों के बारे में,
मन्नतें माँगकर तीर्थों की कष्टपूर्ण यात्राओं में
+
जिनको शायद किसी झंझावात की तरह
गुहार लगाते हुए जिस वर की
+
झेला होगा तुमने
सैंकड़ों बार की थी तुमने कामना
+
अपने इस फ़ैसले से पहले ।
मैं क्या वही हूँ?
+
मैंने अपनी छोटी–सी ज़िन्दगी में
 +
बहुत कम अवसर पाए हैं फ़ैसला करने के,
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पर मुझे ऐसा लगता है
 +
कि कोई भी फ़ैसला अंतिम नहीं होता
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परिणति तो एक और केवल एक ही
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होती है फ़ैसले की,
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लेकिन अवसर अनंत होते हैं ।
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मेरे फ़ैसले की घड़ी अभी आई नहीं !
 
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22:11, 7 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

ऐ लड़की !
तुझे अब लड़की कहूँ भी तो कैसे ?
अब तो बसा लिया है तुमने
अपना एक नया संसार
समर्पित कर दिया है तुमने अपना वजूद
और समाहित कर लिया है
किसी को अपनी दुनिया में ।
मैं जानता हूँ
हँसी–ख़ुशी स्वीकार किया है तुमने यह सब
पर नहीं जानता
उस मानसिक तनाव,
पारिवारिक ख़ुशियों के दबाव
या सामाजिक स्थितियों के बारे में,
जिनको शायद किसी झंझावात की तरह
झेला होगा तुमने
अपने इस फ़ैसले से पहले ।
मैंने अपनी छोटी–सी ज़िन्दगी में
बहुत कम अवसर पाए हैं फ़ैसला करने के,
पर मुझे ऐसा लगता है
कि कोई भी फ़ैसला अंतिम नहीं होता
परिणति तो एक और केवल एक ही
होती है फ़ैसले की,
लेकिन अवसर अनंत होते हैं ।
मेरे फ़ैसले की घड़ी अभी आई नहीं !