भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुन्दर उदिता / सविता सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी }} गहरी काली रात सो...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:52, 5 नवम्बर 2007 का अवतरण
गहरी काली रात सोई है उदिता जैसी
खोले अपने कपड़े अपने बाल बिस्तर में अकेली
मन में है न उसके कोई उलझन
कोई विषाद या फिर चाह
सो चुकी है रात पूरी एक नींद
खोल चुकी है आँख
बाहर सुन्दर लाल गोला सूरज का निकल चुका है
बाहों को हवा में ऊपर उठा लेती हुई सुखद एक अंगड़ाई
बदन को करती हुई सीधा
अपने कपड़े पहन रही है उदिता
सामने नीला आकाश बना है देखो
कितना बड़ा दर्पण देखने के लिए उसके
अपना यह सौन्दर्य