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"आग धुधुआता कभी-ना-कभी लहकी / बच्चू पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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यह कविता सॉनेट विधा में लिखी गयी है| "सॉनेट" अंग्रेजी साहित्य की एक काव्य विधा है| इस विधा की कविता में १४ पक्तियाँ होती हैं| | यह कविता सॉनेट विधा में लिखी गयी है| "सॉनेट" अंग्रेजी साहित्य की एक काव्य विधा है| इस विधा की कविता में १४ पक्तियाँ होती हैं| |
14:09, 1 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
आग धुधुआता कभी-ना-कभी लहकी,
छार-छार दुनिया के हो जाई अँगना
बहके दीं, कबले ई बाबू लोग बहकी
तखता उलटि जाई, गइहें मठमंगना
मछरी पर बकुला के चलता, चली अभी
बाकिर भेंटा जाई कबहूँ त केंकरा
पतझर उजाड़ी, बगइचा के छली अभी,
लेकिन लहराई बसंतो के अँचरा
जंतर ना मंतर, ना जादू, ना टोना
धूप का देखवला से जिनगी न सुधरी
आँकर तपवला से ना होई सोना
बिअही के परतर ना करी कबो उढ़री
आँखि खोली जागीं सभे, हो गइल भोर
दुनिया के बदलीं, लगा दीहीं जोर
यह कविता सॉनेट विधा में लिखी गयी है| "सॉनेट" अंग्रेजी साहित्य की एक काव्य विधा है| इस विधा की कविता में १४ पक्तियाँ होती हैं|