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"काठी / सन्ध्या सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

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20:36, 1 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

राताब्दियन से शिकार हो आइल बानी
तोहार रगड़ल, भोगल,
मसाला जर गइला पर
फेंक देहल काठी अइसन
बकिर हर बेर
तूँ काहें भुला जालऽ कि
मसाला काठिए प चढ़ल होला,
जेकरा एक रगड़ से जर जाला घर
जरि के छार हो जाला
-शहर-के-शहर
ऊ त हमहीं बानी,
जे अपना में आग समेटले
चुपाइल रहीला,
आखिर कुछुओ होखे
हम मेहररुए नू हईं