भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बदले मन के प्रसंग / प्रेम शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम शर्मा |अनुवादक=न वे रथवान र...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
बियाबान | बियाबान | ||
करता है अगवानी । | करता है अगवानी । | ||
− | + | ||
जी हो | जी हो | ||
अथवा जहान | अथवा जहान |
11:14, 10 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
बदले
मन के प्रसंग
बदली बोली-बानी !
टूटा
फूटा मज़ार
खण्डहर-सा
एक कुआँ
गूलर के
पेड़ तले
देता
ख़ामोश दुआ ।
मीलों तक
बियाबान
करता है अगवानी ।
जी हो
अथवा जहान
मगहर हो
या काशी
आधा जीवन
मृगजल
आधा
तीरथवासी
एक ही
अगन मोती
एक ही अगन पानी ।
(धर्मयुग 16 अप्रैल 1972, नया प्रतीक पूर्वांक, दिसम्बर 1973)