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बदळाव / गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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<poem>बदळो! बदळो!!
हिवड़ै में वपरावो बदळाव री हूंस
दुनिया नैं देखो
अबखायां रो कारण ई
ऐ अनुशासन, नेम अर काण-कायदा है।
जगां-जगां रोप दिया खंूटाखंटा
थरप दिया थान।
मिनख तो मिनख
निबळा लोगड़ा पाळै
प्रीत जियांकला पांगळा पंपाळ,
खपै निभावण नैं सगायां री सरतां।</poem>
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