भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>बदळो! बदळो!!
हिवड़ै में वपरावो बदळाव री हूंस
दुनिया नैं देखो
अबखायां रो कारण ई
ऐ अनुशासन, नेम अर काण-कायदा है।
जगां-जगां रोप दिया खंूटाखंटा
थरप दिया थान।
मिनख तो मिनख
निबळा लोगड़ा पाळै
प्रीत जियांकला पांगळा पंपाळ,
खपै निभावण नैं सगायां री सरतां।</poem>