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|संग्रह=
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita}}<poem>छोरा
घर रा
दिवला होवै
बिना बाट
कदैई नीं देख्यो
दिवलै नंै नैं करता च्यानणो।
दिवलै अर बाट री
दिवलै रै साथै
बाट नैं भी
अरथावणो पड़सी।</poem>