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|संग्रह=लीलटांस / कन्हैया लाल सेठिया
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<Poem>
दिवलो,
न चढ़ते सुरज नै देखै‘र
न ढ़ळतै नै,
बीज,
न उगतै रूखं नै देखै‘र
न फळते नै
पण
बां री आस्था है
बळणैं में‘र गळणैं में !
</Poem>