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"...अर खाक हो जाऊंगो म्हूं /हेमन्त गुप्ता ‘पंकज’" के अवतरणों में अंतर

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म्हीं सदा ईं
डर लागै छै
या जाण’र
कै म्हारा मन में
पनपी उम्मीदां
पूरी होवैगी
या न्हं हो पावैगी
जीवण का संग्राम में
कद कुण-सो घमासाण हो जावैगो
ऊ में म्हारी
जीत को लहरावैगो
या
म्हारी सारी उम्मीदां
हो जावैगी
स्वाहा
हर्या-भर्या रूंखड़ां की
ठंडी-ठंडी बाळ में
मिलेगी म्हारै तांई
किसी अमराई की
ठंडी छांव
जिनगाणी का सुनहरा सुपना
पूजेगा म्हारा पांव
या
सूखी धरती पर
हो जावैगो
म्हारो
तप्यो हुओ सो तन-मन
...अर
खाक हो जाऊंगो म्हूं