भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदळग्यो बगत / गौरीशंकर प्रजापत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरीशंकर प्रजापत |संग्रह= }} [[Category:म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
+
{{KKCatKavita‎}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>आज बदळग्यो बगत
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 +
<poem>
 +
आज बदळग्यो बगत
 
सगळा रै मोड़ो होवै
 
सगळा रै मोड़ो होवै
 
बगत कोनी किणी पाखती
 
बगत कोनी किणी पाखती
पंक्ति 34: पंक्ति 36:
 
कदैई कोई जागा
 
कदैई कोई जागा
 
पासा फोर करियां सूं
 
पासा फोर करियां सूं
कमती-बेसी कोनी होवै...</poem>
+
कमती-बेसी कोनी होवै...
 +
</poem>

08:41, 19 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

आज बदळग्यो बगत
सगळा रै मोड़ो होवै
बगत कोनी किणी पाखती
सगळा ‘ओछो-मारग’ जाणो चावै
भाईजी! जमलोक खातर
क्यूं ओछो-मारग अपणावो
 
पैली नाक खातर हा सगळा कळाप
मिनख मर जावतां नाक खातर
ओ मरणो अर वो मरणो
फरक कांई दोनूं मांय
दुनिया री सगळी माया
इज्जत मांय करै इजाफो
जिणरी खावां बाजरी
उणरी बजावां हाजरी....
 
आज नाक भलाई कटावो
का काटो किणी री नाक
बस आपणो काम होवणो चाहीजै
थोड़ै में घणो चावै
हर जागा स्कीम मांगै
जोवै फोगट में कुण किण भेळै
कांई साव बदळग्यो बगत
क्यूं समझै कोनी
कान तो खुद रा ई खींचीजैला
का अठीनै सूं
का बठीनै सूं
कदैई कोई जागा
पासा फोर करियां सूं
कमती-बेसी कोनी होवै...