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बनेगा वह; बनेगा वह !
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महेंद्रभटनागर की प्रतिनिधि कविताएँ
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02:22, 14 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

आदमी में-

चाह जीवन की

सनातन और सर्वाधिक प्रबल है;


जबकि

हर जीवंत की

अंतिम सच्चाई

मृत्यु है !

हाँ, अंत निश्चित है,

अटल है


लेकिन सत्य है यह भी -

अमरता की : अजरता की

लहकती वासना का वेग

होगा कम नहीं,

अद्भुत पराक्रम आदमी का

चाहता कलरव,

रुदन मातम नहीं !

हर बार

ध्रुव मृति की चुनौती से

निरंतर जूझना स्वीकार !

मृत्युंजय

बनेगा वह; बनेगा वह !


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महेंद्रभटनागर की प्रतिनिधि कविताएँ

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