भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कब मिलिहें पियवा हमार निरमोहिया रे / महेन्द्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
05:44, 22 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
कब मिलिहें पियवा हमार निरमोहिया रे,
कब मिहें पियवा हमार।
बइठल करीं हम मन मे गुनावन
चढ़ल जवनिया भइली भकसावन
ताना मारे सखिया हजार निरमोहिया रे,
कब मिलिहें पियवा हमार।
सोरहों सिंगार करी करिले सगुनवाँ
पिया नाहीं छोड़िहन अबकी फगुनवाँ
नइहर में नइखे गुजार निमोहिया रे।
कब मिलिहें पियवा हमार।
दिन रात बहेला नयनवाँ से पानी
तोरा बिना पियवा बेकार जिन्दगानी
काहे दिहलऽ सुधिया बिसार निरमोहिया रे,
कब मिलिहें पियवा हमार।
कहत महेन्द्र गोरी धीर धरऽ मनवाँ,
फागुन चढ़त अइहें तोहरो मोहनवाँ
मनवाँ के पूरी अरमान निरमोहिया रे।
कब मिलिहें पियवा हमार।