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फाटल-फाटल बँसवा के बंसिया बनवलें से पोर-पोर।
विस भरली बँसुरिया कि पोर-पोर।
जा दिन से मोहन बँसुरिया बजवलें से नीको नाहीं,
लागे दूअरा अँगनवाँ से नीको नाहीं।
चुनि-चुनि कलिया के सेजिया डँसवली चिहुँकिए के।
ए जगावे आधी रतिया चिहुँकिए के।
बृन्दाबने बाजेला मोहनी बँसुरिया कि कुँज बनवाँ,
मोहन घेरेल डगरिया हो कुंज बनवाँ,
मोहन घेरेल डगरिया हो कुंज बनवाँ,
निरखे महेन्दर हो सांवरी सुरतिया से लागी गइलें,
अब तो बांकी रे नजरिया हो लागी गइलें।