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"धरती अमर है / सलाम मछलीशहरी" के अवतरणों में अंतर

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15:11, 22 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

ज़रा आहिस्ता बोल
आहिस्ता
धरती सहम जाएगी
ये धरती फूल और कलियों की सुंदर सज है नादाँ
गरज कर बोलने वालों से कलियाँ रूठ जाती हैं

ज़रा आहिस्ता चल
आहिस्ता
धरती माँ का हृदय है
इस हृदय में तेरे वास्ते भी प्यार है नादाँ
बुरा होता है जब धरती किसी से तंग आती है

तिरी आवाज़
जैसे बढ़ रहे हों जंग के शोले
तिरी चाल
आज ही गोया उठेंगे हश्र के फ़ित्ने

मगर नादान ये फूलों की धरती ग़ैर-फ़ानी है
कई जंगें हुईं लेकिन ज़मीं अब तक सुहानी है