भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फूलि रह चम्पा द्रुम कुसुम कमाल करे, फूलत रसाल नन्द लाल नहिं आवे री / महेन्द्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:18, 23 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
फूलि रह चम्पा द्रुम कुसुम कमाल करे, फूलत रसाल नन्द लाल नहिं आवे री।
अब तो बेहाल ब्रजलाल फिरे राधिका कि जमुना के तीर-तीर नीर ही बहावे री।
डोलत नव पल्लव मानो काम को कमाल करे, पपिहा की बोली हमें गोली सी लगावे री।
द्विज महेन्द्र कवन सी उपाय करूँ अब आली कोयल की कुहू कूक हूक उपजावे री।