भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात भर झगड़े में उनसे गुफ्तगूँ होता रहा / महेन्द्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:50, 24 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
रात भर झगड़े में उनसे गुफ्तगूँ होता रहा,
भोर जब हो गए तो सारा गिला जाता रहा।
खुशनुमाँ आवाज शीरीं कुछ न कुछ गाता रहा,
पहले थी जितनी कुदूरत सभ निकल जाता रहा।
गुहरे-खामोशी खुली फिर कुछ न कुछ बकता रहा,
यार कमसिन है अभी सुन-सुन के घबड़ाता रहा।
लाख समझाया है मैंने फिर भी झुँझलाता रहा,
फिर मोहब्बत का असर कुछ चोटे दिल खाता रहा।
ले लिया जो हमने बोशा यार शरमाता रहा,
हो गया अब तो बसेरा हम जुदा हो जायेंगे।
चुटकियाँ गम ले रहा अब दिल भी घबड़ाता रहा
कहाँ महेन्दर ढूँढते हो क्या तेरा जाता रहा,
हम अकेले रह गये वो आशना जाता रहा।