भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरा अनादर / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>किसी से भी म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:42, 26 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

किसी से भी मांगना
रब्ब से भी
आदर नहीं देता
तुम्हें याद है …. ?
मैंने तुझ से मांग लिए थे
कई सारे रंग
अपनी नज्मों को
और खूबसूरत बनाने के लिए … ?
और तुमने मांग ली थी
बदले में उसकी कीमत
अपनी मुहब्बत की झोली खोल

उस दिन मैं
पाप की भागीदार होने से
बच गई थी
क्योंकि तेरा अनादर
मेरे लिए
रब्ब का अनादर है ….