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"दर्द की महक - 1 / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

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11:42, 26 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

दर्द की महक
यूँ ही नहीं महसूस होती
ज़िन्दगी भर चलना पड़ता है
फासलों के साथ
दरारों को भरना पड़ता है
रिसते ज़ख्मों के लहू संग
जुबां पर लगाने पड़ते हैं टाँके
जब आँखों के आंसू दर्द देख
दहाड़ें नहीं मारते
तब उठती है
दर्द से महक ….