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"मरी मुहब्बत / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

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11:53, 26 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

(इमरोज़ के लिए )

मैं कभी …
आईने के सामने नहीं खड़ी होती
वहाँ कभी 'हीर' दिखती ही नहीं
वहाँ तो 'हक़ीर' दिखती है .
तूने मुझे हक़ीर से हीर बना तो दिया
पर मैं अपने अन्दर की
मरी हुई मुहब्बत
कभी जगा न सकी ….