भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रात की आह / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>जब सूरज डूबत...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:09, 26 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

जब सूरज डूबता
रात तारों को ओढ़ कर
उसके घर की ओर चल देती
उसकी आँखों में
सच्चाई देख …
श्मशान में दीया जलता
ज़िन्दगी धीमे से
आह भरती …
रात कांपते हाथों में
गुलाब पकड़े
कब्र में छुप जाती ….