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"कितनी अतृप्ति है / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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कहता जग तृप्त हुआ जीवन,
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मुखरित हो पड़ता है सहसा,
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मादकता से कण-कण प्रतिक्षण,
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मादकता से कण-कण प्रतिक्षण,<br>
पर फिर विष पीने की इच्छा क्यों जागृत होती है मन में ?
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पर फिर विष पीने की इच्छा क्यों जागृत होती है मन में ?<br>
कवि का विह्वल अंतर कहता, पागल, अतृप्ति है जीवन में।
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कवि का विह्वल अंतर कहता, पागल, अतृप्ति है जीवन में।<br>

23:48, 13 नवम्बर 2007 का अवतरण

कितनी अतृप्ति है...

कितनी अतृप्ति है जीवन में ?
मधु के अगणित प्याले पीकर,
कहता जग तृप्त हुआ जीवन,
मुखरित हो पड़ता है सहसा,
मादकता से कण-कण प्रतिक्षण,
पर फिर विष पीने की इच्छा क्यों जागृत होती है मन में ?
कवि का विह्वल अंतर कहता, पागल, अतृप्ति है जीवन में।