भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKLokRachna
|रचनाकार=अज्ञात
}}
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=अवधी
}}
{{KKCatAwadhiRachna}}
<poem>
सावन सुअना माँग भरी बिरना तो चुनरी रँगाई अनमोल।
माता ने दीन्हेगउ नौ मन सोनवाँ तौ ददुली ने लहर पटोर।।
भैया ने दीन्हेगउ चढ़न को घेड़वा, भौजी मोतिन को हार।
माता के राये ते नदिया बहति है, ददुली के रोये सागर पार।।
भैया के रोये टुका भीजत है, भौजी के दुइ-दुइ आँस।
</poem>