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सावन सुअना माँग भरी

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|रचनाकार=अज्ञात
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सावन सुअना माँग भरी बिरना तो चुनरी रँगाई अनमोल।
 
माता ने दीन्हेगउ नौ मन सोनवाँ तौ ददुली ने लहर पटोर।।
 
भैया ने दीन्हेगउ चढ़न को घेड़वा, भौजी मोतिन को हार।
 
माता के राये ते नदिया बहति है, ददुली के रोये सागर पार।।
 
भैया के रोये टुका भीजत है, भौजी के दुइ-दुइ आँस।
</poem>
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