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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मानोशी|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGeet}}<poem>प्रिय नहीं आना अब सपनों में
स्मृति को आलिंगन कर मुझको
रहने दो बस अब अपनों में
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