"मुनव्वर जिस्म-ओ-जाँ होने लगे हैं / फ़सीह अकमल" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़सीह अकमल }} {{KKCatGhazal}} <poem> मुद्दत से वो...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | मुनव्वर जिस्म-ओ-जाँ होने लगे हैं | |
− | + | कि हम ख़ुद पर अयाँ होने गले हैं | |
− | + | ब-ज़ाहिर तो दिखाई दे रहे हैं | |
− | + | ब-बातिन हम धुआँ होने लगे हैं | |
− | + | जिन्हें तारीख़ भी लिखते डरेगी | |
− | + | वो हंगामे यहाँ होने लगे हैं | |
− | + | बहुत से लोग क्यूँ जाने अचानक | |
− | + | तबीअत पर गिराँ होने लगे हैं | |
− | + | फ़ज़ा में मुर्तइश भी बे-असर भी | |
− | + | हम आवाज़-ए-अज़ाँ होने लगे हैं | |
− | + | सियासी लोग अब चोले बदल कर | |
− | + | ख़ुदा के तर्जुमाँ होने लगे हैं | |
− | + | जो हम को जाँ से बढ़ कर चाहते थे | |
− | + | नसीब-ए-दुश्मनाँ होने लगे हैं | |
+ | |||
+ | वो चिंगारी जो ऐन-ए-मुद्दआ है | ||
+ | तो हम शोला-ब-जाँ होने लगे हैं | ||
+ | |||
+ | कभी थे नफ़ा अपना आप हम भी | ||
+ | मगर अब तो ज़ियाँ होने लगे हैं | ||
+ | |||
+ | अज़ीयत-कोशियों का फ़ैज़ देखो | ||
+ | मसाइल दास्ताँ होने लगे हैं | ||
+ | |||
+ | बयाँ हम को करेगा वो कहाँ से | ||
+ | कि हम तो ख़ुद बयाँ होने लगे हैं | ||
+ | |||
+ | ज़रा आपे में रक्खो ख़ुद को ‘अक्मल’ | ||
+ | कि बच्चे अब जवाँ होने लगे हैं | ||
</poem> | </poem> |
22:32, 5 नवम्बर 2013 के समय का अवतरण
मुनव्वर जिस्म-ओ-जाँ होने लगे हैं
कि हम ख़ुद पर अयाँ होने गले हैं
ब-ज़ाहिर तो दिखाई दे रहे हैं
ब-बातिन हम धुआँ होने लगे हैं
जिन्हें तारीख़ भी लिखते डरेगी
वो हंगामे यहाँ होने लगे हैं
बहुत से लोग क्यूँ जाने अचानक
तबीअत पर गिराँ होने लगे हैं
फ़ज़ा में मुर्तइश भी बे-असर भी
हम आवाज़-ए-अज़ाँ होने लगे हैं
सियासी लोग अब चोले बदल कर
ख़ुदा के तर्जुमाँ होने लगे हैं
जो हम को जाँ से बढ़ कर चाहते थे
नसीब-ए-दुश्मनाँ होने लगे हैं
वो चिंगारी जो ऐन-ए-मुद्दआ है
तो हम शोला-ब-जाँ होने लगे हैं
कभी थे नफ़ा अपना आप हम भी
मगर अब तो ज़ियाँ होने लगे हैं
अज़ीयत-कोशियों का फ़ैज़ देखो
मसाइल दास्ताँ होने लगे हैं
बयाँ हम को करेगा वो कहाँ से
कि हम तो ख़ुद बयाँ होने लगे हैं
ज़रा आपे में रक्खो ख़ुद को ‘अक्मल’
कि बच्चे अब जवाँ होने लगे हैं