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नफ़स-नफ़स, क़दम-क़दम</div>
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भाषा की लहरें</div>
  
 
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रचनाकार: [[शलभ श्रीराम सिंह]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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नफ़स-नफ़स, क़दम-क़दम
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भाषाओं के अगम समुद्रों का अवगाहन
बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
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मैंने किया। मुझे मानव–जीवन की माया
घिरे हैं हम सवाल से, हमें जवाब चाहिए
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सदा मुग्ध करती है, अहोरात्र आवाहन
जवाब दर-सवाल है कि इन्क़लाब चाहिए
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इन्क़लाब ज़िन्दाबाद
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सुन सुनकर धाया–धूपा, मन में भर लाया
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब
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ध्यान एक से एक अनोखे। सबकुछ पाया
जहाँ आवाम के खिलाफ साजिशें हों शान से
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शब्दों में, देखा सबकुछ ध्वनि–रूप हो गया ।
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
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मेघों ने आकाश घेरकर जी भर गाया।
वहाँ न चुप रहेंगे हम,कहेंगे हाँ कहेंगे हम
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मुद्रा, चेष्टा, भाव, वेग, तत्काल खो गया,
हमारा हक हमारा हक हमें जनाब चाहिए
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जीवन की शैय्या पर आकर मरण सो गया।
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद
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ज़िन्दाबाद इन्क़लाब
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सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ भाषा ।
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भाषा की अंजुली से मानव हृदय टो गया
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कवि मानव का, जगा नया नूतन अभिलाषा ।
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भाषा की लहरों में जीवन की हलचल है,
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ध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है
 
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11:57, 20 नवम्बर 2013 का अवतरण

भाषा की लहरें

रचनाकार: त्रिलोचन

भाषाओं के अगम समुद्रों का अवगाहन
मैंने किया। मुझे मानव–जीवन की माया
सदा मुग्ध करती है, अहोरात्र आवाहन

सुन सुनकर धाया–धूपा, मन में भर लाया
ध्यान एक से एक अनोखे। सबकुछ पाया
शब्दों में, देखा सबकुछ ध्वनि–रूप हो गया ।
मेघों ने आकाश घेरकर जी भर गाया।
मुद्रा, चेष्टा, भाव, वेग, तत्काल खो गया,
जीवन की शैय्या पर आकर मरण सो गया।

सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ भाषा ।
भाषा की अंजुली से मानव हृदय टो गया
कवि मानव का, जगा नया नूतन अभिलाषा ।

भाषा की लहरों में जीवन की हलचल है,
ध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है