भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कठै सूं लावूं ? / सिया चौधरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasth...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:49, 23 नवम्बर 2013 का अवतरण
एक आंक,
दोय आंक
तीजो तो लिखणो नीं आवै
जद म्हैं म्हारै
मन री लिखूं
हाथ धूजण लागै
कांई म्हैं सोचूं
अर कांई म्हैं बिसरावूं
म्हारै मन री सगळी लिख देवूं
वै सबद कठै सूं लाऊं?
मुंडै सूं क्यूं नीं नीसरै
डरता-सा सबद
म्हारै होठां फड़कै
हिवड़ै रा दोय टूक होयग्या
अमूझतो-खीजतो
काळजो धड़कै धक्-धक्
ओ अळसायो मन,
किण नैं दिखावूं
म्हारी सगळी बातां कैय देवूं
वै बोल कठै संू लावूं?
उधाड़ देऊं
ओ दरद रो चदरो,
खिंडावूं सगळा रा सगळा
आंख रा मोती
हाथ बंध्योड़ा
चुप रो ताळो
खोल परै बगावूं
पण आ करणै री
वा बांक कठै सूं लावूं?