भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जयमाल / विमल राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=इन्द्रधन...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:55, 10 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
जब तक जयमाल न पड़ती है
ग्रीवाएँ सुलज न झुकती हैं
आँचल भी पहरा देता है
कुछ भीतर-भीतर होता है
कौमार्य-मचलता रहता है
मन सौ-सौ झौंके सहता है
दोनों का हृदय धड़कता है
नयनों से प्यार उमड़ता है
पर जैसे ही ‘जयमाल’ हुई
लज्जा से कन्या छुई-मुई
पौरूष अँगड़ाई लेता है
लगता है- विश्व-विजेता है
जब सातों फेरे पड़ते हैं
पौरूष के झंडे गड़ते हैं
यह बात नहीं स्वाभाविक है
दाता बनता अभिभाविक है
‘कन्या का दान’ किया जाता
त्राता बन जाता है दाता
यह विडंबना तो भारी है
बिकती बजार में नारी है