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जब वो मस्जिद में अदा करते हैं</div>
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हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी</div>
  
 
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रचनाकार: [[इमाम बख़्श 'नासिख']]
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रचनाकार: [[द्विजेन्द्र "द्विज"]
 
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जब वो मस्जिद में अदा करते हैं
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इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
सब नमाज़ अपनी क़ज़ा करते हैं
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हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं
  
जिन की रफ़्तार के पामाल हैं हम
+
हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल
वही आँखों में फिरा करते हैं
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वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं
  
तेरे घर में जो नहीं जाते क़दम
+
हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी
क्या मेरे तलुवे जला करते हैं
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हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं
  
नहीं होते हैं फ़रामोश सनम
+
कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमें
ख़ाक हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं
+
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं
  
गो नहीं पूछते हरगिज़ वो मिजाज़
+
कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं
हम तो कहते हैं दुआ करते हैं
+
जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है
  
मौसम-ए-गुल में बशर हैं माज़ूर
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वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की
गुल तलक चाक क़बा करते हैं
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कि जिनके साये ही दम-ख़म पिघाल देते हैं  
 
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शाद हैं बाग़-ए-फ़ना में वो गुल
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अपनी हस्ती पे हंसा करते हैं
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चमन-ए-दहर में महबूबों से
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क्या ही अशाफ़ वफ़ा करते हैं
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गर ख़ज़ां आती है फूलों के साथ
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पर अना दिल के उड़ा करते हैं
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आज वो तेग़-ए-निगह से ‘नासिख़’
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किश्वर-ए-दिल को कटा करते हैं  
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01:25, 28 दिसम्बर 2013 का अवतरण

हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी

रचनाकार: [[द्विजेन्द्र "द्विज"]

इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं

हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल
वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं

हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं

कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमें
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं

कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं
जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है

वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की
कि जिनके साये ही दम-ख़म पिघाल देते हैं