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"रेत के दिन / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

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पीठ दिखलाने लगी हैं
 
धार की गहराइयाँ।
 
धार की गहराइयाँ।
  

16:38, 4 जनवरी 2014 का अवतरण

पीठ दिखलाने लगी हैं
धार की गहराइयाँ।

रेत के दिन
खिले टेसू
आग का करते प्रदर्शन
जंगलों ने
घर बसाये
इन घरों में दूरदर्शन

अंधड़ों में नाचती हैं
पेड़ की परछाइयाँ।

मधुबनी की
कलाकृतियों-सी
सरल सादी दिशायें
विरल छाया में
बबूलों की
रँभाती हुई गायें

तपोवन की धूल
माथे मल रहीं अमराइयाँ।