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"जब समंदर में सूरज कहीं खो गया / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर
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जाने क्या बात थी रात ठहरी नहीं | जाने क्या बात थी रात ठहरी नहीं |
16:56, 4 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
जब समुन्दर में सूरज कहीं सो गया
पंछी वापस हुये हर मकीं सो गया
अब्र आलूदा1 मंज़र हवा ले उड़ी
ख़ुश्क खेतों में ख्वाबे-हसीं सो गया
आंख मलता हुआ वहमे-दिलकश2 उठा
बिस्तरे-शब3 पे जिस्मे-यक़ीं4 सो गया
जाने क्या बात थी रात ठहरी नहीं
सुबह जागी, सकूते-ज़मीं5 सो गया
अजनबीयत की दीवार रौशन रही
वह कहीं सो गया मैं कहीं सो गया
उसकी आंखों नेतार्इ दे-इक़रार6 की
थरथराते लबों पर 'नहीं’ सो गया.
ऐसी खुशबू उड़ी दो बदन से 'कंवल’
चांद महवे-ख़याले-हसीं7 सो गया
1. मेधाच्छादित 2. मनोहर आशंका 3. रात का विछौना
4. विश्वास की वधू 5. धरती की शांति 6. स्वीकृति का समर्थन
7. सुन्दर कल्पनाओं में तल्लीन होना।