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"आसमां से छिन गया जब चाँद तारों का लिबास / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर

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17:39, 4 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

आस्मां से छिन गया जब चांद तारों का लिबास1
शबनमी कपड़ों में लिपटी थी ज़मीं की नर्म घास

धुंद के पर्वत पिघलते देखकर खुश थीं बहुत
दोपहर को ताज़ा कलियां भी हुर्इंप रमहवे-यास2

तोड़कर दीवार लम्हों3 की हुआ जबरू-ब-रू4
मैं भी अफ़्सुर्दा5 था, उसका दिल भी था बेहद उदास

मौजज़न6 इमरोज़7 का खारा समुंदर था बहुत
तेरी यादों के जज़ीरे थे मगर कुछ आस-पास

जब बदन कलियों का सूरज की किरण छूने लगी
ओस की बूंदों ने पाया खुद को बेहद बदहवास

मेरे तन में खे़माज़न8 थी इक सुलगती दोपहर
वो भी था पहने हुये बर्फी़ले मौसम का लिबास

जिस्म की चादर लपेटे था 'कंवल’ वह गुलबदन
मैं भी उससे रेज़ा रेज़ा2 हो रहा था रूशनास


1. वस्त्र-वेशभूषा, 2. नैराश्यमेंतल्लीन, 3. क्षण-पल,
4. सम्मुख-साक्षात, 5. खिन्न-मलिन, 6. उर्मिल-तरंगित,
7. आज, 8. डेराडालेहुए, 9. टुकड़े-टुकड़े।