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"नन्हें का ख़त / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर
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भूले बिसरे लिखते | भूले बिसरे लिखते | ||
सिलसिले तमाम | सिलसिले तमाम | ||
− | + | नन्हें का ख़त | |
− | बड़के भइया के | + | बड़के भइया के नाम। |
− | इस चिट्ठी को जैसे | + | इस चिट्ठी को, जैसे- |
तार बाँचना | तार बाँचना | ||
− | बहना | + | बहना की पालकी ओहार बाँचना, |
− | बापू की | + | बापू की पकी हुई मूछों का काँपना |
− | अम्मा की आँखों की | + | अम्मा की आँखों की- |
− | हार बाँचना | + | हार बाँचना, |
− | सुबह शाम की लीकों | + | सुबह-शाम की लीकों |
लिपटे भीतर-बाहर | लिपटे भीतर-बाहर | ||
− | हारे मनमारे से | + | हारे-मनमारे-से |
− | सेहन | + | सेहन दालान। |
− | + | ||
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− | + | ||
+ | बौराईं आँगन के- | ||
+ | आम की टहनियाँ | ||
+ | चढ़ते फागुन के दिन चार बाँचना, | ||
गुमसुम बैठीं भाभी | गुमसुम बैठीं भाभी | ||
टेक कर कुहनियाँ | टेक कर कुहनियाँ | ||
− | कंधों पर उतरा | + | कंधों पर उतरा अँधियार बाँचना, |
− | देखो जी ! | + | देखो जी! |
− | यह | + | यह खत भी अनदेखा मत करना |
घर भर का राम-राम | घर भर का राम-राम | ||
− | गाँव का | + | गाँव का सलाम। |
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11:55, 6 जनवरी 2014 का अवतरण
भूले बिसरे लिखते
सिलसिले तमाम
नन्हें का ख़त
बड़के भइया के नाम।
इस चिट्ठी को, जैसे-
तार बाँचना
बहना की पालकी ओहार बाँचना,
बापू की पकी हुई मूछों का काँपना
अम्मा की आँखों की-
हार बाँचना,
सुबह-शाम की लीकों
लिपटे भीतर-बाहर
हारे-मनमारे-से
सेहन दालान।
बौराईं आँगन के-
आम की टहनियाँ
चढ़ते फागुन के दिन चार बाँचना,
गुमसुम बैठीं भाभी
टेक कर कुहनियाँ
कंधों पर उतरा अँधियार बाँचना,
देखो जी!
यह खत भी अनदेखा मत करना
घर भर का राम-राम
गाँव का सलाम।