भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मत पूछो / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो ("मत पूछो / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (बेमियादी) [move=sysop] (बेमियादी))) |
|
(कोई अंतर नहीं)
|
17:32, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
बीते दिन
किस तरह गुजारे हैं
मत पूछो!
प्रिये-प्राण कहने की
ओंठो की तपिश
गर्म ओंठो पर
सहने की
कली-फूल झरने की
सब कुछ को छूने के पहले
कुछ डरने की-
बातें क्यों
बातों में हारे हैं
मत पूछो!
कहाँ गए सारे के सारे परिचित चेहरे
आत्मीय भीगे तन
मुक्त हँसी
मन गहरे?
पल अपलक या सदी
काँपती पुकारों की
मौन सूखती नदी
और हम
ठगे हुए कगारे हैं
मत पूछो!
लम्बे साये हुए
डूब रहा सूरज
यहाँ इस ठौर
हम कब के आए हुए!
एक गोद, एक नींद थपकी
वापसी बसेरों को
होती हम सब की,
अपनी शामें
अपने-अपने ध्रुवतारे हैं
किस तरह गुजारे हैं
मत पूछो!