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"गाँव का आसमान / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

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17:33, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

आमों में सरसई लगेगी
महुए फूलेंगे
गाँवों से होकर आना
हम तुमको छू लेंगे

एक आँख में फूली सरसों
दूजी में गलियारे,
मन में लाना भरी गोद
मुस्काते मौन इशारे,

परछाईं छू कर आना
हम तुमको छू लेंगे।

खेतों में खंजन के जोड़े
मेड़ो पर सारस के
सीवानों में उड़ें पपीहे
पिहकें तरस-तरस के

धुले रुमालों पर सरपत के
सपने झूलेंगे।

सुबह गाँव का आसमान
इन साँसों में अँटता है
शाम, शहर का पिंजरा
छत के छल्ले में टँगता है

ठहरी आँखें, पंख फड़कते
कैसे भूलेंगे?