भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नीमों में कल्ले / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो ("नीमों में कल्ले / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया (‎[edit=sysop] (बेमियादी) ‎[move=sysop] (बेमियादी)))
 
(कोई अंतर नहीं)

17:34, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

फूट रहे नीमों में कल्ले
फिर सींकें मोड़ कर
रिया सिया
रच-रच बनवायेंगी छल्ले।

घुँघरू बिन पायल-
पाजेब पड़ी पाँवों में
दो पल के सुख पहने
जनम के अभावों ने

खुशियों से गूँज उठे
गाँव-घर-मुहल्ले।

बातों ही बातों में
महल बना एक किता,
साथ-साथ उठ बैठे
हँसते माता-पिता,

देहरी पर बहू जैसे
बैठी तिनतल्ले।

अब की फिर गम खायें
नथ-झुलनी-झुमके
बौंड़र के तिनके
तन छुएँ घूम-घूम के

गरदीली आँखों में
सपनों के बुल्ले।